मुसीबत से बचने की दुआ 5/5 (10)

मुसीबत से बचने की दुआ

Musibat Se Bachne Ki Dua

मुसीबत से बचने की दुआ – Musibat Se Bachne Ki Dua, हर इंसान की जिंदगी में कभी-न-कभी मुसीबत जरूर आती है। छोटी-मोटी परेशानियां तो आती-जाती रहती हैं, जिनसे इंसान खुद बचाव करता है।

कुछ मुसीबतें अचानक आ धमकती है, जबकि कुछ अपनी गलतियों की वजह से आ जाती हैं। यह भी देखा गया है कि कोई व्यक्ति जब खुशहाल रहता है तब उसके साथ सभी होते हैं।

मां-बाप, रिश्तेनाते और दोस्त। किंतु जब मुसीबत आती है तब कोई भी साथ नही देता है. मुसीबत छोटी हो या बड़ी, वह कभी भी, और कही से भी आ सकती है।

मुसीबत से बचने की दुआ

मुसीबत से बचने की दुआ

मुसीबत बता कर नहीं आती है, जबकि प्रत्येक व्यक्ति यह चाहता है कि उसकी जिन्दगी में कभी भी कोई मुसीबत नहीं आये.। हर मुसीबत उससे दूर रहे।

वैसे देखा जाए तो इंसान के पास मुसीबतेें उकसी गलतियों की वजह से ही आती। कुछ गलतिया ंतो इंसान जानबूझकर कर करता है, जबकि कुछ उससे अनजाने में हो जाती हैं।

 मुसीबतों में तकलीफों का सिलसिल लगातार बना रहता है, जबकि कुछ में तो जान और माल दोनों का खतरा रहता है। अल्लह ताला के पास हर मुसीबत से बचने की दुआ है। अल्लाह सबसे बड़ा है। वह चाहे तो राजा को रंक और रंक को राजा बना दे। इंसान को अपने ऊपर घमंड को कभी हावी नहीं होने देना चाहिए। इसका असर मुसीबतों के रूप में होता है। 

मुसीबत में पढ़ने की दुआः 

 

यदि कोई व्यक्ति मुसीबतों से घिरा हो तो उसे निम्नलिखित कदम अवश्य उठाने चाहिए-

  • सबसे पहले 5 वक्त की नमाज अता करनी चाहिए। इस दौरना पूरी नेमत के साथ कुरआन की आयतें पढ़नी चाहिए। 
  • दुआ के लिए “या कदिरु” अपने 41 बार पढ़ें। खासकर तब जब आप विकट मुसीबत या परेशानी से घिरे हों। यह एक तरह से आपकी अल्लाह से की जाने वाली पुकार है। 
  • इस दुआ के अवल यानी शुरू और आखिर में दुरूद ए पाक या दुरूद इब्राहीम सात-साथ बर पढ़़नी चाहिए। यह छोटी सी दुआ आपका मुसीबतों में मलहम का काम करेगी।
  • अगर मुसीबत लंबे से चली आ रही हो या बार-बार एक जैसी परेशानी आ जाती हो तो मौलवी से मिलकर सलाह-मशविरा कर उचित उपाय करने चाहिए।  

   मुसीबत के मुश्किल वक्त से बचाव 

 

यह तो सभी जानते हैं कि मुसीबत कहकर नहीं आती है।  मुसीबतों में मुश्किल वक्त से बचाव किया जा सकता है। इस दौरान आने वाली हर आफत और सख्ती से बचा जा सकता है। मुसीबत से बचने की इस्लामिक दुआ इस प्रकार है- 

  • दुआः-हजरते अस्मा बिन उमेस (रजीअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है के रसूलअल्लाह (सलाल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने मुझसे फरमाया की।
  • इसे भी पढ़ने के लिए किसी भी दिन का कोई भी समय हो सकता है। नमाज अता करने के बाद फिर से वजु कर लें।
  • पहले दुरूद शरीफ 11 बार पढ़ें। उसके बाद दुआ को 101 बार बढ़ें। 
  • अंत में एक बार फिर दुरूद शरीफ 11 बार पढ़ने के बाद अपने दोनों हाथ फैलाकर अल्लाताला से दुआ करें और मुसीबतों आई मुश्किलों को खत्म करने की दुआ करें। यह भी बताएं कि मुसीबतें किस तरह की है। जैसे बीमारी, कारोबार में नुकसान से आर्थिक तंगी, नौकरी छूटना, दंापत्य जीवन में मतभेद आदि। 
  • इस दुआ को लगातार 11 दिनों तक रोजाना जरूर पढ़ना चाहिए।

इसके अलावा एक कलिमात भी है, जिसे विकट से विकट मुसीबत में हों पढ़ा जाना चाहिए। वह कलिमात है- अल्लाहु, अल्लाहु रबी ला युश्रीका बही शय्या। अर्थत अल्लाह , अल्लाह मेरा रब है और मै उसके साथ किसी को शरीक नहीं करता।

 करगर दुआ  

 

 जिंदगी में आने वाली हर तरह की मुश्किलातों से निजात पाने के लिए बहुत ही आसानी से पढ़ा जाने वाला दुआ है- बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम। इसे 11 दिनों 100 बार तक लगातार पढ़ा जाना चहिए। इसके बाद कुराअ में दी गई आयत को  भी 21 बार पढ़ना चाहिए। ध्यान रहे कि कोई भी वजीफा, अमल और दुआ का इेस्तमाल तभी कारगार साबित हो पाता है जब उसे करने तरीका सही हो। इस बारे में मौलवी से सलाह लेनी चाहिए। आयत है-

अल्लाहुम्मा अंता रबी ला इल्ला अंता अलैका तवाक्कालतू वा अंता रब्बुल अर्शील अजाम

माशा अल्लाहु काना वामा लम या श-आ-ला यकुनु ला 

हवला वाला कुव्वत इल्ला बिल्लाहिल अलिय्यिल अजीम

आलमू अन्नालाहा अल कुल्ली शै इन कदीर व अन्नाल्ला

 हा कद अहाता बी कुल्ली शै इन इल्मा

अल्लाहुम्मा इन्नी औजुबिका मिन शर्री नफ्सी वा शर्री 

कुल्ली दब्बतीं अंता आखिजुम बिना सी यातिहा इन्ना रबी अला सिरातिम मुस्तकीम।

इसे पढ़ने संबंधी कुछ हिदायतें इस प्रकार हैं-

  • सबसे पहले पांच वक्त नमाज जरूर पढें। उसके बाद नए वजू के साथ इसे 11 या 21 बार पढ़ने की तैयारी करें।
  • इसे सही तलाफ्फुज से पढ़ा जाना चाहिए। 
  • इसके पहले और आखिर में दुरूद शरीफ 7 मरतबा पढ़ें। 
  • इस दुआ को पहले दिन जितनी बार पढ़ा गया हो, उसे उतनी ही बार 11 या 21 दिनों तक पढ़ा जाना चाहिए। साथ ही पढ़ने का समय भी एक ही रहना चाहिए। जैसे यदि इसकी शुरूआत दिन में दस बजे की गई हो तो हर रोज इसी दिन पढ़ा जाना चाहिए। 
  • औरतों को माहवारी के दिन इसे नहीं पढ़ना चाहिए। 

संबंध बिगाड़ने से बचाव

अगर आप किसी वैसी मुसीबत के शिकार हो गए हों, जिनसे निजी संबंध, जैसे दांपत्य जीवन, प्रेम-संबंध बिगड़ गए हों। या फिर मुसीबत की वजह से आपके निकट संबंधी आपसे दूर चले गए हों।

इस स्थिति में सजदह में सिर रख कर 100 मर्तबा अर-हमर्र राहिमीन पढ़ें। इसे रोजाना 21 दिनों तक 100 बार पढ़ें। इसे अमल में लाने के लिए नीचे का तरीका का नियम से पालन करें।  

  • इस दुआ के लिए शुरूआत किसी मंगलवार और शनिवार को छोड़कर किसी भी दिन से की जा सकती है। शुक्रवार के दिन से किया गया शुरूआत ज्यादा अच्छा माना गया है। समय रात के नौ बजे का बाद का तय करें।
  • इंशा के नमाज से फारिग होकर सबसे घर में कमरे के एकांत कोने या बालकनी में साफ चादर बिछाएं और अच्छी तरह से ताजा वुदू कर बैठ जाएं। 
  • उसके बाद 11 बार दुरूद शरीफ को दुआ से पहले और बाद में पढ़ें। अंत में दोनों हाथ फैलाकर अल्लाह ताला से मुसीबतों की वजह से निकट संबंध में आई खटास को दूर करने की दुआ करें।
  • इस दुआ को औरतें भी कर सकती हैं। उन्हें इसकी शुरूआत माहवारी के बाद करनी चाहिए।

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परेशानी दूर करने का वजीफा

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